Friday, March 4, 2011

WAFA

वफ़ा   
तन्हाइयों मे बैठें हैं, ये तकदीर का फसाना है, 
तुम्हारी बेवफ़ाई ही, तुम्हे याद करने का बहाना है| 
सोचता हूँ दिल, चल किसी और का दामन थाम लूँ, 
मगर तुमसे किया वफ़ा का वादा भी निभाना है| 
कहा था हमसे कि ज़िंदगी के हर मोड़ पर साथ चलेंगे, 
हँसी नही बन सके तो क्या, अश्क बन कर रहेंगे| 
ज़ुल्फो के अंधेरो में, कभी हमारा दर्द समेटने वाले, 
सहर से शाम तलक, हम तेरा इंतज़ार करेंगे| 
तेरी तस्वीर के दीदार से ही, सारा मंज़र थम जाता है, 
तेरे संग बिताया हर एक लम्हा याद आता है| 
गर छोड़ना था हमें, तो अपना वादा ही निभाते, 
खुदा की उस दुनिया मे हमें भी साथ ले जाते| 
आज अपनी वफ़ा का आख़िरी वादा भी हमने निभाया है, 
बहते हुए इन अश्कों को अपनी आँखों मे सजाया है| 
शहीद--इश्क़ कहलाना कभी मंज़ूर ना था हमको, 
सो मिसाले--इश्क़ बनकर दुनिया को दिखाया है| 

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