वफ़ा
तन्हाइयों मे बैठें हैं, ये तकदीर का फसाना है,
तुम्हारी बेवफ़ाई ही, तुम्हे याद करने का बहाना है|
सोचता हूँ ऐ दिल, चल किसी और का दामन थाम लूँ,
मगर तुमसे किया वफ़ा का वादा भी निभाना है|
कहा था हमसे कि ज़िंदगी के हर मोड़ पर साथ चलेंगे,
हँसी नही बन सके तो क्या, अश्क बन कर रहेंगे|
ज़ुल्फो के अंधेरो में, कभी हमारा दर्द समेटने वाले,
सहर से शाम तलक, हम तेरा इंतज़ार करेंगे|
तेरी तस्वीर के दीदार से ही, सारा मंज़र थम जाता है,
तेरे संग बिताया हर एक लम्हा याद आता है|
गर छोड़ना था हमें, तो अपना वादा ही निभाते,
खुदा की उस दुनिया मे हमें भी साथ ले जाते|
आज अपनी वफ़ा का आख़िरी वादा भी हमने निभाया है,
बहते हुए इन अश्कों को अपनी आँखों मे सजाया है|
शहीद-ए-इश्क़ कहलाना कभी मंज़ूर ना था हमको,
सो मिसाले-ए-इश्क़ बनकर दुनिया को दिखाया है|
Kya khoob likha hai...beautiful! :)
ReplyDeleteThank you pranshi:)
ReplyDeleteA beautiful poem.....u write fantastically well Rudra bhai.....
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