Saturday, November 10, 2012

मोहब्बत -एक सौदा?

आज जब बिछड़े तो जाना, मोहब्बत भी क्या चीज़ होती है 
आशिक का जनाज़ा होने तक ये ,यूं ही बेपरवाह सोती  है
गर जान भी कोई दे दे तो, फर्क ना इसको पड़ना है 
अंधों की अंधी दुनिया में,कारोबार तो इसका चलना है 
"मिट जायें या मिटा दें", खरीददार हैं इसके ऐसे ही 
खुशनसीब हैं जो मिट जाते हैं, मिटाने वालों ने ये सौदा सिखा ही नहीं   
एक आग का दरिया है ज़ालिम, हर कोई ऐसा कहता है 
जो डूबा उसने जाना है, जब चोट जिगर पे सहता है।
मोहब्बत की दुकान में बन्दे, हर चीज़ बेशकीमती  नहीं होती 
खरीददार ना खुद ही बिक जाता ,जो बेपरवाह कभी ये न सोती ,जो बेपरवाह कभी ये न सोती ....